गोस्वामीजी का उद्देश्य लोक के बीच प्रतिष्ठित रामत्व में लीन करना है ;
2.
हमारा उद्वेश्य बस मर्यादा पूर्वक एकाग्रचित व शान्त भाव से सन्तुष्ट रहने की साधना करके आत्मा को परमात्मा में लीन करना होना चाहिये ।
3.
किंतु यह स्पष्ट होना जरूरी है कि मन व चित्त को संयत कर ध्यान को आत्मसत्ता के साथ कैसे पूर्णतः लीन करना है ।।
4.
परमात्मा में ही विलीन हो जाना, ध्रुव की तरह, मीरा एवं प्रह्लाद की तरह हर साधक का जीवन लक्ष्य होना चाहिए ; किंतु उसके लिए स्वयं को परमात्मा में लीन करना होगा।
5.
वे चेतना की चौथी अवस्था हैं, तुरीय अवस्था, ध्यान की अवस्था, जो सचेत से परे है, गहरी निद्रा और सपनों की अवस्था | वे सिर्फ एक चेतना हैं जो हर जगह व्याप्त है | इसलिए शिव जी की पूजा के लिएअपने आपको शिव में लीन करना होगा | शिव होकर ही आप शिव पूजा कर सकते हैं | चिदानन्द रूप-वे वो चेतना हैं जो परम आनंद है |